५ ऑगस्टच्या लोकरंग मधे गुलज़ारांच्या पावसाच्या कवितांवर लेख होता.
त्यातल्या मला आवडलेल्या काही कविता.
शाखों पे पत्ते थें
पत्तों पे बूंदे थी
बूंदो में पानी था.....
......पानी मे आंसू थे....
********
रुकती है, थमती है, कभी बरसती है
बादल पे पांव रखे, बारिश मचलती है
********
मोती मोती बिखर रहा है गगन
पानी पानी है, सब पिघलने दो
मेंहा बरसने लगा है आज की रात
आज की रात मेंहा बरसने दो.....
********
पलकों पर एक बूँद सजाए
बैठी हूँ सावन ले जाए
जाए, पी के देश में बरसें
इक मन प्यासा, इक मन तरसे.....
********
-गुलज़ार
त्यातल्या मला आवडलेल्या काही कविता.
शाखों पे पत्ते थें
पत्तों पे बूंदे थी
बूंदो में पानी था.....
......पानी मे आंसू थे....
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रुकती है, थमती है, कभी बरसती है
बादल पे पांव रखे, बारिश मचलती है
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मोती मोती बिखर रहा है गगन
पानी पानी है, सब पिघलने दो
मेंहा बरसने लगा है आज की रात
आज की रात मेंहा बरसने दो.....
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पलकों पर एक बूँद सजाए
बैठी हूँ सावन ले जाए
जाए, पी के देश में बरसें
इक मन प्यासा, इक मन तरसे.....
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-गुलज़ार
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